बात हो रही है तेरी मेरी
अच्छा लग रहा है
फिर भी कोई दूर,
बहुत दूर लग रहा है|
इतने दिन बात नहीं हुई
फिर भी तू पास ही थी
तेरी आवाज़ सुनी
ख़ुशी हुई
पर तू पास नहीं थी|
तेरी आवाज़ सुन के
अब भी मुस्कुराता हूँ
क्या सही में कुछ बदल गया
बस इस सोच में पड़ जाता हूँ|
तू भी मुस्कुरा कर जवाब देती है
मेरी बातों का
स्पर्श अभी भी याद है
मुझे तेरे हाथों का
तेरी आवाज़ सुनते ही
मुट्ठी बंद कर लेता हूँ
तेरा हाथ नहीं होता तो
इस बुरे एहसास को अपनी
हँसी में बंद कर देता हूँ|
खुश हो जाता हूँ यही सोच के
कि बात हो रही है तेरी मेरी
काश जान पाता क्या छुपा रही है
ये खुबसूरत मुस्कराहट तेरी|
क्या खूब लिखा हैं जेस भाई, बहुत खूब
ReplyDeleteधन्यवाद दोस्त :)
ReplyDelete