बहुत दिन हुए
तुम्हें शीशे के सामने खड़े नहीं देखा
क्या तुमने श्रृंगार करना छोड़ दिया?
या मैं तुम्हें श्रृंगार के पार देखने लगा हूँ?
जब देखता था तुम्हें काजल लगाते हुए
उन बंद आँखों के पीछे कुछ छुपाते हुए
आंख खुलते ही मेरी तरफ मुस्कुराते हुए|
वो एक हाथ से बालों को संभालना
दुसरे से दांतों में रखे क्लिप को निकालना
वो कानों में झुमके डालना
और वो नज़र मिला के भी मुझे टालना|
सब कुछ निहारता रहता था
मेरा दिल बहुत कुछ कहता था
दिल तो आज भी कुछ कहता है
पर तुम शीशे के सामने दिखती नहीं
अब मैं वो सब कुछ कहूँगा
जो शीशा कभी कहता नहीं|
Tuesday, May 7, 2013
शीशा और तुम
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Saturday, April 20, 2013
माँ मुझे इस दिल्ली से दूर ले जा
माँ मुझे इस दिल्ली से दूर ले जा
और ले जा उस बड़े दिलवाली दिल्ली में
जिस के दिल में जिस्म की भूख ना हो
सीने में वासना की आग ना हो
और बलात्कार का वो काला दाग ना हो
बस माँ मुझे ले चल
मैं ही नहीं तू भी बच जाएगी
ये दिल्ली हमें नोच नोच के नहीं खाएगी
मैं तो अभी बहुत छोटी हूँ
मुझे छुपा ले अपने आँचल में
कहीं इस दिल्ली की गन्दी नज़र मुझपे ना पड़ जाये
कहीं मेरा आने वाला कल आने से पहले ही ना सड़ जाये
माँ तुम उठती क्यों नहीं
क्या बड़े दिलवाली दिल्ली बहुत दूर है?
या वो दिल्ली भी इतनी ही क्रूर है?
क्या इस दिल्ली के लोग भी उस दिल्ली में रहने लगे
माँ अब तेरी आँखों से आंसू क्यों बहने लगे
माँ ये तू क्या कह रही
बड़े दिलवाली दिल्ली कहीं है ही नहीं
दिलवाली बस एक छवी ही रह गयी
अब दिल्ली का दिल आवारा हो गया
और इसे लगता है हर लड़की का जिस्म हमारा हो गया
माँ तुझे पता था दिल्ली अब हैवान है
यहाँ कोई इंसान नहीं सब शैतान हैं
फिर भी तूने मुझे पैदा किया
अपनी ममता का क्यों सौदा किया
अपनी दिल्ली को मैंने इन सभ्य बलात्कारियो को हार दिया
माँ तूने मुझे भ्रूण में ही क्यों ना मार दिया?
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Friday, February 8, 2013
उम्र बढती जाएगी
उम्र बढती जाएगी
जवानी चली जाएगी
फिर भी
मेरी बूढी होती उँगलियाँ
तेरी सफ़ेद लटों को सहलायेंगी
और तू मेरे झुर्रियों से भरे चेहरे के बीच
छोटी-छोटी आँखों में अपना अक्स देख पायेगी
मैं भी तेरा चश्मा उतार कर
कोशिश करूँगा खुद को देखने की
तेरी आदत नहीं जाएगी
शरमाकर "रहने दो” कहने की
और मुझे कस के गले लगाने की
शरारती हम फिर भी रहेंगे
जब उम्र बढती जाएगी
और जवानी चली जाएगी|
काजल तेरी आँखों को जितना आज भाता है
तब भी उतना ही भायेगा
बस फरक इतना होगा कि
वो तेरी बढती उम्र के कुछ साल खायेगा
कपडे चुनते हुए तू तब भी confuse रहेगी
आज क्या पहनू? तू फिर से यही कहेगी
इतने सालों बाद तो शायद मुझे समझ आ ही जाएगी
कि तुझपे तो सब जचता है, पर तुझे कब समझ आएगी
ये सब तब भी होगा
जब उम्र बढती जाएगी
और जवानी चली जाएगी|
फरवरी के कुछ एक दिन
हमेशा की तरह इश्किया मौसम के रहेंगे
Rose Day पे मेरे मुरझाये हुए हाथ
खिला हुआ गुलाब देंगे
और Propose Day पे तेरे बूढ़े पति
अपने प्यार के इज़हार का जवाब लेंगे
जब उम्र बढती जाएगी
जवानी चली जाएगी पर
इस बूढ़े बूढी की प्रेम कहानी चलती जाएगी|
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Tuesday, January 8, 2013
आँखें बंद करूँ या खोलूं
आँखें बंद करते ही तुम सामने आती हो
मुझे बताओ
आँख खुलते ही कहाँ चली जाती हो
आँखें खोले बिना मैं रह नहीं सकता
और तुम सामने ना हो ये मैं सह नहीं सकता
अब तुम बताओ मैं क्या करूँ
आँखें खोलूं या प्यार करूँ
अब आँख खुली तो तुम्हारी तस्वीर आँखों के सामने हैं
हाथ कहाँ हैं तुम्हारे, जो मुझे थामने हैं
तुम मुस्कुराती ही रहोगी या कुछ बोलोगी भी
अंदाज़ा ही लगाऊं या दिल के भेद खोलोगी भी
अब तुम ही बताओ मैं क्या करूँ
आँखें बंद कर लूं या तुम्हारा दीदार करूँ
तुम चुप चाप मत रहो
मैं आँखें बंद कर लेता हूँ
जो पूछना है पूछ लो
मैं जवाब देता हूँ
अगर मैं भी सिर्फ मुस्कुराता रहा
तो तुम्हे कैसा लगेगा
शायद तुम भी सिर्फ मुस्कुराओगी
क्योंकि दिल नज़रों के ज़रिये सब कुछ कहेगा|
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