Friday, August 24, 2012

मैं क्या चाह रहा

मैं कोने में बैठा  
कुछ सोच रहा, कुछ लिख रहा
किसी ने जाना मुझे क्या दिख रहा  

हर कोई मुझसे मिलता 
मुस्कुराकर आगे चलता  
कोई पूछता क्या लिख रहे?
मेरा दिल अब क्या कहे?
कोने में बैठा 
मैं क्या सोच रहा, क्या लिख रहा
किसी ने ना जाना मुझे क्या दिख रहा

कभी कभी कोई मेरे पास आ जाता 
कुछ देर बतियाता  और चला जाता
काश वो जान पाता
मैं कोने में बैठा
क्या सोच रहा 
क्या लिख रहा और
मुझे क्या दिख रहा

धीरे धीरे मेरे शब्द लोगों तक पहुँच रहे
शायद कोई जान सके 
मेरे शब्द असल में क्या कहें
अब मैं लोगों के और करीब जा रहा 
शायद उन्हें समझ आये
मुझे क्या दिख रहा 
और
मैं क्या कहना चाह रहा|


Friday, August 17, 2012

खुबसूरत शहर


मैं भी कभी खुबसूरत था 
एक पावन मूरत था 
कोई आया और गुटका थूक गया
तुमने साफ़ नहीं किया 
और लाल रंग वहीं सूख गया  

मेरे हर कोने में आकर्षण था
तुम्हारी सभ्यता का मैं दर्पण था
कोई आया और मूत गया 
तुमने अनदेखा किया और
वो गीलापन वहीं सूख गया

मेरे कोनों ने इश्क का हर आयाम देखा 
यही पे आशिकों ने लांघी हर रेखा 
पर मुझपे प्यार की कहानी लिखना मज़बूरी नहीं था
इन नादान आशिकों से मुझे बचाना क्या ज़रूरी नहीं था?

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